Harish Rawat

क्या कुमाऊ का अभिशाप हरदा को हरा देगा?


उत्तराखंड में चुनावी समर की शुरुआत हो चुकी हैं व आज नामांकन का आखिरी दिन हैं व कांग्रेस के कद्दावर नेता हरीश रावत ने नैनीताल के लालकुँआ क्षेत्र से चुनावी ताल ठोक दी हैं व हरदा एकमात्र ऐसे नेता हैं जो राज्य की मुख्यमंत्री के पद के सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं|


हरीश रावत लालकुँआ आ तो गए हैं लेकिन उनकी एकतरफा जीत में भाजपा ने मोहन बिष्ट को उत्तारने के बाद एक संशय सा बना दिया हैं क्योकि मोहन बिष्ट की क्षेत्र में बहुत ही अच्छी पकड़ होने के साथ साथ पंचायत चुनावो में उन्होंने उसे सिद्ध भी किया हैं|


वैसे भी कुमाऊ में अभिशाप ही हैं की जब भी कोई हेविवेट प्रत्याशी चुनाव लड़ता हैं वो भी तब जब वो राजनीति की अनंत उचाइयो को छू सकता हैं तो चुनाव हार जाता हैं व नारायण दत्त तिवारी उसका उदहारण हैं क्योकि राजीव गांधी की आक्समित मौत के बाद हुए चुनावों में नारायण दत्त तिवारी प्रधानमन्त्री पद के प्रबल दावेदार थे लेकिन नैनीताल लोकसभा सीट से वो भाजपा के बलराज पासी से चुनाव हार गए|

सोचिये अगर नारायण दत्त तिवारी प्रधानमंत्री बन जाते तो यह पूरे उत्तराखंड के लिए गौरव की बात होती व विकास होता सो अलग|
आप सभी जानते हैं कि उत्तराखंड में कांग्रेस व भाजपा के अन्दर गढ़वाल लोंबी जरूरत से ज्यादा हावी हैं क्योकि हमारे पास अग्रणी नेता नहीं हैं व जो काम के हैं उन्हें हम आगे ही नहीं आने देते हैं व ऐन समय पर वो चुनाव हार जाते हैं| अजय भट्ट उसका एक और उदहारण है क्योकि अगर अजय भट्ट रानीखेत से चुनाव जीत जाते तो उनका उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनना तय था|

लगता हैं की यह अभिशाप अब हरदा भी लग चुका है व अब यही सब हर हरदा के साथ हो सकता हैं क्योकि लालकुआं मे हरदा को चारो ओर से चुनौतिया मिल है जैसे कि संध्या डालाकोटी का चुनाव लड़ने की घोषणा करना व अन्य रसूखदार लोगो का पार्टियों के विरुद्ध चुनाव लड़ना है।

लालकुआँ विधानसभा सबसे पिछड़ी हुई विधानसभाओ में से एक हैं व सही प्रतिनिधित्व ना मिलने के कारण यह और पिछड़ती जा रही हैं व हरदा का लालकुंआ से चुनाव लड़ना उनके लिए एक अवसर के समान हैं क्योकि हरदा की प्रशासनिक पकड़ व हेवीवेट होने के कारण सबका ध्यान यंहा पर रहेगा| माना की मोहन बिष्ट जी जुझारू व सर्वप्रिय व्यक्ति है लेकिन जीत के बाद उनका अग्रणी नेताओ व मंत्री पद मिलना लगभग असंभव ही है और दूसरा वो युवा हैं उनके पास अभी समय भी हैं लेकिन ना तो हरदा और ना ही लालकुआँ के पास समय हैं

यह अब जरूरी हो गया हैं की कुमाऊँ को आगे लाने के लिए हमें एकजुटता से प्रयास करने होंगे व दल, रिश्तेदारी व लाभ को छोड़कर भविष्य के प्रति गंभीर होना होगा ताकि क्षेत्र का विकास और कुमाऊँ को उसकी पहचान दिलाई जा सके व इसके लिए हरदा को आगे लाना ही होगा।

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जीवन पंत
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