उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार को बने हुए मार्च में 2 वर्ष हो चुके हैं लेकिन रावत जी में अभी भी तंत्र में वो पकड़ व समझ नहीं बना पाए हैं जिसके कारण संसाधन कुछ होने के बावजूद भी लोग प्रशासनिक विसंगतियो का सामना कर रहे हैं| ताजा मामला केंद्र सरकार की आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के आरक्षण की नीतियों के सम्बन्ध में हैं| त्रिवेंद्र सिंह सरकार ने लोक सभा चुनावो के कारण आनन् फानन में फरवरी 2019 में ही इस निति को प्रदेश में लागू कर दिया था लेकिन इसके प्रारूप व प्रक्रिया को लेकर कोई भी निर्णय नहीं लिया| होना तो यह चाहिए था की सरकार को इसके लिए एक सरकारी आदेश निकालना चाहिए था|
आज जब उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों में सामान्य वर्ग से आर्थिक रूप से पिछड़े होने का प्रमाण पत्र माँगा जा रहा हैं तो तहसील से लेकर प्रदेश तक किसी को इस बारे में जानकारी नहीं हैं| प्रदेश ही नहीं देश भर में आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग की श्रेणी में आवेदन मंगाए जा रहे हैं लेकिन सरकारी अक्षमता के कारण राज्य के विद्यार्थी व बेरोजगार हताश व निराश हैं|
सामजिक कार्यकर्ता श्री जीवन पन्त के अनुसार होना तो यह चाइये आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लिए अलग से प्रमाणपत्र की बजाय सरकारों को सभी को राहत देने के लिए आर्थिक रूप से पिछड़े (BPL) व जाति प्रमाणपत्र साथ लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए जिससे की राज्य में आम जन को तंत्र की विफलता से बचाया जा सके| क्योकि चुनाव की घोषणा होने के पश्चात राज्य सरकार चुनाव ख़त्म होने तक कोई भी शाश्नादेश जारी नहीं कर सकती है और इस दौरान कई विश्विध्यलाओ व नौकरी के लिए आवेदन की तिथि जा चुकी होगी|
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